शास्त्रों में एक श्लोक लिखा-यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:।
मतलब जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। इसी श्लोक को चरितार्थ करते हुए देवी चित्रलेखा महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती आ रही हैं। उन्होंने सात वर्ष की अल्पायु से कन्या भ्रूण हत्या, पर्यावरण संरक्षण, वन्य जीव सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया हुआ है।
इतना ही नहीं बीमार व बेसहारा गायों का भी वह सहारा बनी हुई हैं। सात वर्ष की आयु में श्रीमद्भागवत कथा वाचक बनने के साथ शुरू हुए अपने सफर में उन्होंने समाजसेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। चित्रलेखा से देवी चित्रलेखा बनीं, इस महिला ने साबित कर दिया कि यदि नारी चाहे तो उसके लिए कोई भी कार्य मुश्किल नहीं है। दूसरों शब्दों में कहें तो वह अपनी सेवा व प्रेम से जन-जीव की जिंदगी के कैनवस को रंगों से भर रही हैं।
होडल खाम्बी निवासी देवी चित्रलेखा (22) ने 12 वर्ष पहले अपने गुरु बाबा गिरधारी, माता ब्रजलता, पिता टीका राम के सहयोग से लाचार व बीमार गोवंश के लिए काम करना शुरू किया। उनके इस कदम से जिला पलवल ही नहीं, उत्तर प्रदेश के मथुरा, कोसी, अलीगढ़ व आसपास के जिलों तथा फरीदाबाद, गुड़गांव व मेवात जिले में बेसहारा गायों को एक सहारा मिला।
मतलब जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। इसी श्लोक को चरितार्थ करते हुए देवी चित्रलेखा महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती आ रही हैं। उन्होंने सात वर्ष की अल्पायु से कन्या भ्रूण हत्या, पर्यावरण संरक्षण, वन्य जीव सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया हुआ है।
होडल खाम्बी निवासी देवी चित्रलेखा (22) ने 12 वर्ष पहले अपने गुरु बाबा गिरधारी, माता ब्रजलता, पिता टीका राम के सहयोग से लाचार व बीमार गोवंश के लिए काम करना शुरू किया। उनके इस कदम से जिला पलवल ही नहीं, उत्तर प्रदेश के मथुरा, कोसी, अलीगढ़ व आसपास के जिलों तथा फरीदाबाद, गुड़गांव व मेवात जिले में बेसहारा गायों को एक सहारा मिला।
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